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तप॑से॒ स्वाहा॒ तप्य॑ते॒ स्वाहा॒ तप्य॑मानाय॒ स्वाहा॑ त॒प्ताय॒ स्वाहा॑ घ॒र्माय॒ स्वाहा॑। निष्कृ॑त्यै॒ स्वाहा॒ प्राय॑श्चित्यै॒ स्वाहा॑ भेष॒जाय॒ स्वाहा॑ ॥१२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तप॑से। स्वाहा॑। तप्य॑ते। स्वाहा॑। तप्य॑मानाय। स्वाहा॑। त॒प्ताय॑। स्वाहा॑। घ॒र्माय॑। स्वाहा॑ ॥ निष्कृ॑त्यै। निःऽकृ॑त्या॒ इति॒ निः॒ऽकृ॑त्यै। स्वाहा॑। प्राय॑श्चित्यै। स्वाहा॑। भे॒ष॒जाय॑। स्वाहा॑ ॥१२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:39» मन्त्र:12


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को किन साधनों से सुख प्राप्त करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मनुष्यों को चाहिये (तपसे) प्रताप के लिये (स्वाहा) (तप्यते) सन्ताप को प्राप्त होनेवाले के लिये (स्वाहा) (तप्यमानाय) ताप गर्मी को प्राप्त होनेवाले के लिये (स्वाहा) (तप्ताय) तपे हुए के लिये (स्वाहा) (घर्माय) दिन के होने को (स्वाहा) (निष्कृत्यै) निवारण के लिये (स्वाहा) (प्रायश्चित्यै) पापनिवृत्ति के लिये (स्वाहा) और (भेषजाय) सुख के लिये (स्वाहा) इस शब्द का निरन्तर प्रयोग करें ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि प्राणायाम आदि साधनों से सब किल्विष का निवारण करके सुख को स्वयं प्राप्त हों, दूसरों को प्राप्त करावें ॥१२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः कैः साधनैः सुखं प्राप्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(तपसे) प्रतापाय (स्वाहा) (तप्यते) यस्तापं प्राप्नोति तस्मै (स्वाहा) (तप्यमानाय) प्राप्ततापाय (स्वाहा) (तप्ताय) (स्वाहा) (घर्माय) दिनाय (स्वाहा) (निष्कृत्यै) निवारणाय (स्वाहा) (प्रायश्चित्यै) पापनिवारणाय (स्वाहा) (भेषजाय) सुखाय। भेषजमिति सुखनामसु पठितम् ॥ (निघं०३.६) (स्वाहा) ॥१२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मनुष्यैस्तपसे स्वाहा तप्यते स्वाहा तप्यमानाय स्वाहा तप्ताय स्वाहा घर्माय स्वाहा निष्कृत्यै स्वाहा प्रायश्चित्यै स्वाहा भेषजाय स्वाहा च निरन्तरं प्रयोक्तव्या ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः प्राणायामादिसाधनैः सर्वं किल्विषं निवार्य्य सुखं प्राप्तव्यं प्रापयितव्यं च ॥१२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी पाप दूर करून प्राणायात इत्यादी साधनांनी स्वतः सुख प्राप्त करावे व इतरांनाही सुख द्यावे.